Wednesday, 29 April 2009

भीषण गर्मी में घने पेड़ की छाव

आज सुबह अख़बार में एक खबर थी. माध्यमिक शिक्छा मंडल म. प्र. भोपाल ने बारहवी का परीक्छा परिणाम घोषित किया. खबर साधारण ही थी पर हम जैसे कुछ लोग जो थोड़े से ही में खुश हो जाते हैं उनके लिए इसमें अन्दर एक अच्छी खबर भी थी. मंडल ने परीक्छा ख़त्म होने के १९ वे दिन परिणाम घोषित कर दिया. मंडल के इतिहास में ये सब से कम समय में परिणाम घोषित करने का रिकार्ड है. अन्यथा मुझे अपने बचपन का ध्यान है की परीक्छा के बाद दो दो माह बीत जाते थे और परिणाम घोषित नहीं हो पाता था.
बारहवी में पढ़ने वाले छात्र दुनिया की भीषण सच्चाइयों से रूबरू होने के लिए तैयार हो रहे होते हैं. उनके मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है. मन में एक आदर्श व्यवस्था का सपना होता है. उनका किसी सरकारी तंत्र से पहला वास्ता स्कूल और माध्यमिक शिक्छा मंडल के रूप में ही पड़ता है. ऐसे में मंडल उनके सामने एक आदर्श प्रस्तुत करता है तो ये भीषण गर्मी में घने पेड़ की छाव की तरह सुखद और स्वागत योग्य है. माध्यमिक शिक्छा मंडल के सभी कर्मचारी अधिकारीयों को बधाई.

Monday, 27 April 2009

माँ मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.

जब भी अख़बार पढ़ता हूँ. टी व्ही. पर समाचार देखता सुनता हूँ या इन्टरनेट खंगालता हूँ, हर तरफ इन नेताओं का शोर ही शोर है, चुनाव ने इनका शोर और बढा दिया है. एक दूसरे से बेपरवाह सब चिल्लाये जा रहे है. आज के इस माहौल को देख कर बचपन में पिताजी से सुनी एक कहानी याद आती है. छोटी सी कहानी थी पर थी याद रखने लायक. आप को भी सुना देता हूँ.

एक माँ थी. सिलाई, कढ़ाई करके बड़ी मुस्किल से अपने दो बेटों को पालती थी. पर उसकी आँखों में हजारो सपने थे. बेटे बड़े होंगे, खूब पढ़ेंगे, अच्छे अच्छे काम करेंगे, नाम रोशन करेंगे.
बेटों की पढाई ठीक से हो सके बेटे अच्छे से रह सके इसके लिए माँ रात दिन एक करती थी. न खुद की फिक्र न घर की चिंता, बस काम, काम और काम.
बेटे भी इस बात को समझते थे. वो भी अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे. एक बेटा स्कूल से आ कर माँ के गले लग कर कहता, माँ मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. बड़ा हो कर मैं खूब पैसे कमाऊंगा फिर तुझे कभी काम नहीं करना पड़ेगा. घर से लापरवाह, बस्ता फेकता और खेलने भाग जाता.
दूसरा बेटा थोड़ा अलग था. वो स्कूल से आता, अपना बस्ता ठीक जगह रखता, चुपचाप बिखरा हुआ घर समेटता, घर व्यवस्थित करता. दिन भर की थकी हुई माँ को एक कप चाय बना कर देता. फिर माँ के गले लग के पूछता, माँ, मैं खेलने जाऊँ?
उस माँ का नाम भारती है. आपको क्या लगता है दोनों में से माँ भारती के सपने कौन पूरे करेगा, ये शोर मचाते नेता या चुपचाप अपने कर्त्तव्य निर्वहन में लगे आम लोग.

Sunday, 26 April 2009

जागरूक मतदाता मजबूत लोकतंत्र

चुनाव के दो चरण हो चुके है. नेताऒ से लेकर आम आदमी तक मतदान के गिरते प्रतिशत को लेकर चर्चा कर रहा है. इसके भिन्न भिन्न कारण गिनाये जा रहे हैं. इन सब के बीच विदिशा लोकसभा संसदीय सीट के ग्राम पान्झ के मतदान केंद्र पर एक अजूबा हुआ.

दिनांक 23 अप्रेल को पान्झ में संसदीय सीट के लिए 92.25% मतदान हुआ। माइक्रो ओब्जर्बर की रिपोर्ट पर मामला जिला निर्वाचन अधिकारी से होते हुए चुनाव आयोग तक पंहुचा. मामले की उच्च स्तरीय समीक्छा हुई. समीक्छा में जबरिया मतदान की आशंका व्यक्त की गई और एक राजनैतिक दल के अभिकर्ता के खिलाफ जबरिया मतदान का मामला कायम किया गया. आप सोच रहे होंगे इसमें अजूबा क्या हुआ?
अजूबा तो इस के बाद हुआ. आयोग ने इस मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान का आदेश जारी किया. दिनांक 25 अप्रेल शनिवार को इस मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान हुआ और मतदान का प्रतिशत रहा 93.41% . पहले से भी 1.16% अधिक.
इस केंद्र के कुछ मतदाताओ ने जुलूस निकल कर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सोपते हुए निर्वाचन आयोग से माफ़ी मांगने के लिए कहा है. क्या कहेंगे आप?

Friday, 24 April 2009

एक दिन का आईपीएस

अहमदाबाद। थैलेसीमिया से गंभीर रूप से पीड़ित नौ सालके विजय की आई पी एस बनने की इच्छा आखिरकार पुलिस के सहयोग से बुधवार को पूरी हो ही गई। पुलिस ने एक दिन के लिए विजय को पुलिस कमिश्नर की तरह मान सम्मान दिया। इस नन्हे आई पी एस ने शाम जब शहर में गस्त की तो सभी उसे अचरज से देखने लगे। यहाँ पारसी का भट्ठाके पास एक चाल में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर पूंजाभाई खानैया और जानी बहन खानैया का नौ बर्षीय पुत्र विजय बड़ा हो कर पुलिस अधिकारी बनना चाहता है। लेकिन भगवान ने उसकी किस्मत में कुछ और ही लिखा है। वह थैलेसीमिया से पीड़ित है।
सपनों को साकार करने की पहल : विजय के पड़ोसी खीमाजी रायका ने इस नन्हे बालक की इच्छा पूरी करने का बीड़ा उठाया। वे विजय को आर्मी स्टोर पर यूनीफोर्म दिलाने के लिए ले गये। स्टोर के मालिक भवानी माहेश्वरी ने विजय के बारे में हकीकत जानने के बाद 2500 रु की वर्दी उसे फ्री में दे दी। इसके बाद सयुंक्त पुलिस आयुक्त अतुल करवल ने विजय की इच्छा पूरी करने के लिए यथासंभव सहयोग दिया।
पुलिस अधिकारी की वर्दी में विजय को कमिश्नर कार्यालय ले जाया गया। वहां अतिरिक्त पुलिस आयुक्त जी के परमार सहित सभी पुलिस कर्मियों ने उसे सलामी दी।
गस्त पर निकले विजय साहब : अचानक आदेश मिला की विजय साहब गस्त पर जायेंगे तुंरत उनके लिए जिप्सी आई। पुलिस दल के साथ वे शहर की गस्त पर निकले। विभिन्न चौराहों पर तैनात पुलिसकर्मीयों ने उन्हें सलामी दी। छोटे से 'आईपीएस' अधिकारी का सभी ने स्वागत किया।
(अहमदाबाद से कुलदीप सिंह की रिपोर्ट दैनिक भास्कर भोपाल में दिनांक 24.04.09 को प्रकाशित)

कामना की सीमा

जब हमें कहीं दावत पर आमंत्रित किया जाता है, तो वहां जो कुछ उपलब्ध होता है, हम उसका आनंद उठाते हैं। अगर वहां रसगुल्ला या कोई दूसरी मिठाई या व्यंजन नही है और हम उसकी फरमाइश करें तो हमारे इस आचरण को बेतुका माना जाता है।
जीवन में भी, हम उस सब की कामना में कुंठित होते है जो हमारे पास नहीं है- इसके बाबजूद कि हमारे पास बहुत कुछ मौजूद होता है, पर उसकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं होता।

Wednesday, 22 April 2009

हम भी आ गए हैं.

मेरे एक मित्र हैं। नाम है मयंक चतुर्वेदी। पेशे से पत्रकार हैं। हिन्दुस्थान समाचार के मध्य प्रदेश ब्यूरो के प्रमुख हैं। पूरे मध्य प्रदेश से खबरें एकत्रित करावा कर एजेन्सी को पहुँचवाते हैं। दिन भर खबरों के बीच में ही रहते हैं। खबरें ही ओढ़ते हैं खबरें ही बिछाते हैं और खबरों की ही खाते हैं। पूरी तरह खबरमय इन्सान। ख़बर में और मयंक भाई में भेद करना मुस्किल। फ़ोन पर अपनी पत्नी से बात करते है तो बीच बीच में भाभी जी को इन्हें बताना पड़ता है की आप ख़बर नहीं पढ़ रहे हो अपनी पत्नी से बात कर रहे हो। समर्पण की अद्भुत मिसाल।

बीच बीच में मिलते रहते थे। एक दिन मिले तो मैंने पूंछा - क्या ख़बर है?

जैसे मैंने दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। आह भर कर बोले - मनोज भाई, क्या बताऊँ, कोई खबर ही नहीं है।
अब चौकने की बारी मेरी थी मैंने कहा- मयंक भाई, चुनाव चल रहा है और आप कह रहे हो कोई खबर ही नहीं है।

हाँ मनोज भाई, आप ही बताओ क्या ख़बर है? हत्या, फसाद, षडयंत्र, गाली गलोज, काट डालूँगा, कुचलवा दूंगा, जूता, चप्पल, कमजोर, मजबूत, चुनाव धांधली !! खबरें ही खबरें हैं। सब नकारात्मक खबरें। हमारे वैज्ञानिक चुपचाप आसमान में उपग्रह टांग रहे हैं, इसकी है किसी को ख़बर ? नरेन्द्र, रेणुका, प्रियंका जैसे किशोर और युवा अपने जैसे युवाओ के बीच राष्ट्रीय भावना के प्रसारण एवं संवेदनशील समाज के निर्माण के लिए स्वयम का घर परिवार छोड़ कर मूक सेवक की भांति कार्य कर रहे हैं, इसकी है किसी को ख़बर ? ये तो एक दो उदाहरण है। ऐसे ही अनगिनत लोग छोटे बड़े सकारात्मक कार्यो में चुपचाप लगे हैं। इसकी न समाज को ख़बर है न मीडिया को ख़बर देने की फुर्सत।

मयंक भाई का दर्द मैं समझ चुका था। एक ऐसा प्लेटफोर्म बनाने की योजना बनी। जिसमें ऐसी खबरों को और ऐसे साहित्य को प्रमुखता दी जा सके जो समाज में कुछ सकारात्मक परिवर्तन ला सके। उसी के पहले कदम के रूप में आप के बीच हम भी आ गए हैं।

आपके सुझावों, सलाहों एवं समर्थन का हमें इंतजार रहेगा।

जीवन मानो एक दावत है।

जीवन को इस तरह ग्रहण करें मानो वह एक दावत हो। जिसमें आपको शालीनता के साथ पेश आना है। जब कोई व्यंजन आपके पास आए तो थोड़ा सा ले लें। अगर वो गुजर कर आगे चला जाए तो आपकी थाली में जो कुछ मोजूद है उसका स्वाद लेते रहें। अगर कोई व्यंजन अभी तक आपके पास नही आया है तो धीरज के साथ इंतजार करें।
संयम, नम्रता, और कृतज्ञता के इसी दृष्टिकोण के साथ बच्चों, पति अथवा पत्नी, कैरियर और आर्थिक स्थिति के साथ पेश आयें। कामना से अधीर होने की, ईर्ष्या करने की और किसी चीज के लिए झपटने की जरुरत नही है। जब आपका समय आएगा, आपका प्राप्य आपको मिल जाएगा।