Friday, 24 April 2009

कामना की सीमा

जब हमें कहीं दावत पर आमंत्रित किया जाता है, तो वहां जो कुछ उपलब्ध होता है, हम उसका आनंद उठाते हैं। अगर वहां रसगुल्ला या कोई दूसरी मिठाई या व्यंजन नही है और हम उसकी फरमाइश करें तो हमारे इस आचरण को बेतुका माना जाता है।
जीवन में भी, हम उस सब की कामना में कुंठित होते है जो हमारे पास नहीं है- इसके बाबजूद कि हमारे पास बहुत कुछ मौजूद होता है, पर उसकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं होता।

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