जब भी अख़बार पढ़ता हूँ. टी व्ही. पर समाचार देखता सुनता हूँ या इन्टरनेट खंगालता हूँ, हर तरफ इन नेताओं का शोर ही शोर है, चुनाव ने इनका शोर और बढा दिया है. एक दूसरे से बेपरवाह सब चिल्लाये जा रहे है. आज के इस माहौल को देख कर बचपन में पिताजी से सुनी एक कहानी याद आती है. छोटी सी कहानी थी पर थी याद रखने लायक. आप को भी सुना देता हूँ.
एक माँ थी. सिलाई, कढ़ाई करके बड़ी मुस्किल से अपने दो बेटों को पालती थी. पर उसकी आँखों में हजारो सपने थे. बेटे बड़े होंगे, खूब पढ़ेंगे, अच्छे अच्छे काम करेंगे, नाम रोशन करेंगे.
बेटों की पढाई ठीक से हो सके बेटे अच्छे से रह सके इसके लिए माँ रात दिन एक करती थी. न खुद की फिक्र न घर की चिंता, बस काम, काम और काम.
बेटे भी इस बात को समझते थे. वो भी अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे. एक बेटा स्कूल से आ कर माँ के गले लग कर कहता, माँ मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. बड़ा हो कर मैं खूब पैसे कमाऊंगा फिर तुझे कभी काम नहीं करना पड़ेगा. घर से लापरवाह, बस्ता फेकता और खेलने भाग जाता.
दूसरा बेटा थोड़ा अलग था. वो स्कूल से आता, अपना बस्ता ठीक जगह रखता, चुपचाप बिखरा हुआ घर समेटता, घर व्यवस्थित करता. दिन भर की थकी हुई माँ को एक कप चाय बना कर देता. फिर माँ के गले लग के पूछता, माँ, मैं खेलने जाऊँ?
उस माँ का नाम भारती है. आपको क्या लगता है दोनों में से माँ भारती के सपने कौन पूरे करेगा, ये शोर मचाते नेता या चुपचाप अपने कर्त्तव्य निर्वहन में लगे आम लोग.
शायद बच्चे नाम रोशन कर लें और उसके लिए कुछ भी न करें। शायद सपने अपने लिए होने ही नहीं चाहिए। भविष्य को किसने जाना। परन्तु आज तो जो उसक ध्यान रख रही है वही उसकी सच्ची हितचिन्तक है। फिर भी शायद माँ को आशा बस्ता फेंकने वाले से हो।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
भारती की सेवा का तो यज्ञ है - जिसमें सब अपनी क्षमता अनुसार आहुति दे रहे हैं। बस जो आहुति न दे कर यज्ञ का फल पाना चाहता है - वह चोर है।
ReplyDeleteगीता -
इष्टान्भोगान्हि वह देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥३- १२॥