आजकल जब भी समय मिलता है इन्टरनेट पर एक ब्लॉग से दूसरे ब्लॉग की यात्रा पर निकल पड़ता हूँ. कविताये पढना और सुनना मुझे बचपन से ही प्रिय रहा है. इसलिए स्वाभाविक ही है कि मेरी तलाश की प्राथमिकता में कविता, गीत या गजल वाले ब्लोग्स ज्यादा रहते है. इन ब्लोग्स पर जा कर कभी कभी मै बड़े आश्चर्य में पड़ जाता हूँ. इन ब्लोग्स में से ज्यादातर ब्लोग्स पर आपको शिकायत, उदासी, दर्द और अँधेरे के सुर मिलेंगे. ज्यादातर पर एक ही शिकायत मिलेगी कि इन्होने जिनसे भी प्रेम? किया था उन्होंने इनसे प्रेम नहीं किया या इन्होने जीवन में जो चाहा था वो इन्हे नहीं मिला. या जो हो रहा है वो सब ख़राब हो रहा है. ये सब सिर्फ इन कुछ ब्लोग्स पर ही नहीं है हमारे आसपास भी हमें ऐसे कई लोग मिल जायेंगे जो चिर असंतुष्ट है. सदैव एक दूसरे की शिकायत करते मिलेंगे. हमारे राजनेता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. जो हमेशा प्रत्येक अच्छे बुरे काम के लिए दूसरे को दोष देते रहेंगे. तो क्या ये दुनिया वास्तव में इतनी ही ख़राब है? क्या वास्तव में यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा? क्या यहाँ प्रत्येक व्यक्ति धोखेबाज और षड्यंत्रकारी है?
मुझे लगता है ईश्वर ने ये दुनिया बहुत ही सुन्दर बनाई है और हमारा जीवन उस से भी सुन्दर है.
मेरे कालेज के समय के मित्र है संजय कुलकर्णी. मस्त मौला तबियत और हमेशा खुश. खुश हो भी क्यों न? सरकारी नौकरी है, समझदार, संवेदनशील पत्नी और दो खूबसूरत बच्चो के साथ आलीशान घर में रहते हैं. घर ऐसा कि देखने वाला देखता रह जाय. जेब में पैसे इतने की हर बार खर्च करने के बाद भी बच जाएँ.
आप कहेंगे की ये सब जिसके पास हो वो तो खुश रहेगा ही. पर ये हमेशा खुश रहना आज की बात नहीं है, ये जीवन का दृष्टिकोण है, एक आदत है जो संजय ने सप्रयास विकसित की है.
संजय ने बचपन में जब होश संभाला तब पाया कि माँ पिताजी दोनों ही नहीं है. बड़ी दीदी, जो तब स्वयं भी छोटी ही थीं, ने छोटी सी नौकरी में अपने से छोटे तीन भाई बहनों को अत्यंत अभावों और असुरक्छा के बीच पढाया और बड़ा किया. बड़ी दीदी के संघर्ष और त्याग ने संजय को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक सिखाई - जो है उसका महत्त्व समझना और उसके लिए कृतज्ञ होना.
मुझे ध्यान है कालेज के दिनों में भी उसे अपने माँ पिताजी की कमी तो महसूस होती थी पर उसने कभी ईश्वर से इसके लिए शिकायत नहीं की बल्कि वह हमेशा ही माँ सी बड़ी दीदी के लिए कृतज्ञ रहा. इसीलिए उसका बेटा द्विज भी आज बड़ी दीदी से बुआ नहीं दादी कहता है.
डॉ मृणाल गोरे भोपाल में एक सुविख्यात सामाजिक नाम है. कभी केंसर के कारण मौत के मुहाने तक पहुँच चुकी डॉ गोरे से मिल कर आप तनाव में नहीं रह सकते. सदा ही हंसमुख और प्रसन्नचित. डॉ गोरे अपने प्रोफेसन के अलावा केंसर से जूझ रहे लोंगो और आर्ट ऑफ़ लिविंग के लिए काम करती हैं. आर्ट ऑफ़ लिविंग की एक क्लास में मैंने उनसे पूंछा था कि आप सदा हंसमुख और प्रसन्नचित कैसे बनी रहती है? उत्तर में मुझे दो प्रश्न मिले.
आज आपका जन्म दिन है. सुबह के ग्यारह बज गए हैं. आप ऑफिस पहुँच गए हैं. आपकी पत्नी ने आप से इधर उधर की बहुत सी बातें की पर आपको जन्मदिन पर शुभकामनाएं देना वो भूल गई. आप कैसा महसूस करेंगे?
आज आपके घर में एक छोटी सी पार्टी है. उसमे आपने अपने सभी दोस्तों को बुलाया है. आपका बचपन का एक दोस्त है मनीष. वो अमेरिका में बस गया है और उससे आप पिछले बीस सालो से नहीं मिले हैं. आज ही शहर पहुंचा है. आपका जन्मदिन उसे याद था किसी तरह आपका पता पूंछ कर वो आपको जन्मदिन पर शुभकामनाये देने आपके घर आपकी पार्टी में पहुंचा. उसे अचानक अपने घर आया देख आप कैसा महसूस करेंगे?
जाहिर है पहली स्थिति में आप बहुत बुरा महसूस करेंगे और दूसरी स्थिति में बहुत अच्छा. ये अंतर क्यों है?
इस प्रश्न के उत्तर में डॉ मृणाल गोरे कहती है हमारी अपेक्छा का स्तर ही हमें सुखी दुखी बनाता है. आपकी पत्नी से आपकी अपेक्छा का स्तर बहुत ऊंचा था इसीलिए आपको बुरा लगा जबकि मनीष से आपको कोई अपेक्छा ही नहीं थी इसलिए अच्छा लगा.
लोकप्रिय हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर की साप्ताहिक पत्रिका मधुरिमा में एक कालम है - पहला तन्हा सफ़र. इस कालम में पाठिकाएं अपने पहले तन्हा सफ़र की यादे अन्य पाठको के साथ बाँटती हैं. आज की मधुरिमा में राजनादगांव छत्तीसगढ़ की नयन लड्ढा का अनुभव प्रकाशित है. अपने अनुभव में नयन लड्ढा ने लिखा है कि किस तरह उनके पहले तन्हा सफ़र में एक बुजुर्ग दम्पति ने उनका हौंसला बढाया. उन बुजुर्ग दम्पति का बेटा देश के लिए बलिदान हो चुका था और बेटी अनाथ बच्चो को सिक्छित करने का दायित्व निभा रही थी. नयन लड्ढा को उन बुजुर्ग दम्पति से जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा मिला. ये केवल आज प्रकाशित कालम की बात नहीं है. मै इसमें 99 प्रतिशत बार पढता हूँ कि किस प्रकार एक अनजान व्यक्ति ने समय पर मदद की या हौंसला बढाया.
जो है उसका महत्त्व समझना और उसके लिए कृतज्ञ होना, अपनी अपेक्छाओं का स्तर कम रखना और ये विश्वास करना की ये दुनिया और ये जीवन बहुत अच्छा है, यही वो बातें है जो जीवन और दुनिया के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदल कर हमें खुशियाँ दे सकती है.
इसीलिए मैं कहता हूँ खुश रहिये, ये बहुत आसान है. आप क्या कहते है?
मुझे लगता है ईश्वर ने ये दुनिया बहुत ही सुन्दर बनाई है और हमारा जीवन उस से भी सुन्दर है.
मेरे कालेज के समय के मित्र है संजय कुलकर्णी. मस्त मौला तबियत और हमेशा खुश. खुश हो भी क्यों न? सरकारी नौकरी है, समझदार, संवेदनशील पत्नी और दो खूबसूरत बच्चो के साथ आलीशान घर में रहते हैं. घर ऐसा कि देखने वाला देखता रह जाय. जेब में पैसे इतने की हर बार खर्च करने के बाद भी बच जाएँ.
आप कहेंगे की ये सब जिसके पास हो वो तो खुश रहेगा ही. पर ये हमेशा खुश रहना आज की बात नहीं है, ये जीवन का दृष्टिकोण है, एक आदत है जो संजय ने सप्रयास विकसित की है.
संजय ने बचपन में जब होश संभाला तब पाया कि माँ पिताजी दोनों ही नहीं है. बड़ी दीदी, जो तब स्वयं भी छोटी ही थीं, ने छोटी सी नौकरी में अपने से छोटे तीन भाई बहनों को अत्यंत अभावों और असुरक्छा के बीच पढाया और बड़ा किया. बड़ी दीदी के संघर्ष और त्याग ने संजय को जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक सिखाई - जो है उसका महत्त्व समझना और उसके लिए कृतज्ञ होना.
मुझे ध्यान है कालेज के दिनों में भी उसे अपने माँ पिताजी की कमी तो महसूस होती थी पर उसने कभी ईश्वर से इसके लिए शिकायत नहीं की बल्कि वह हमेशा ही माँ सी बड़ी दीदी के लिए कृतज्ञ रहा. इसीलिए उसका बेटा द्विज भी आज बड़ी दीदी से बुआ नहीं दादी कहता है.
डॉ मृणाल गोरे भोपाल में एक सुविख्यात सामाजिक नाम है. कभी केंसर के कारण मौत के मुहाने तक पहुँच चुकी डॉ गोरे से मिल कर आप तनाव में नहीं रह सकते. सदा ही हंसमुख और प्रसन्नचित. डॉ गोरे अपने प्रोफेसन के अलावा केंसर से जूझ रहे लोंगो और आर्ट ऑफ़ लिविंग के लिए काम करती हैं. आर्ट ऑफ़ लिविंग की एक क्लास में मैंने उनसे पूंछा था कि आप सदा हंसमुख और प्रसन्नचित कैसे बनी रहती है? उत्तर में मुझे दो प्रश्न मिले.
आज आपका जन्म दिन है. सुबह के ग्यारह बज गए हैं. आप ऑफिस पहुँच गए हैं. आपकी पत्नी ने आप से इधर उधर की बहुत सी बातें की पर आपको जन्मदिन पर शुभकामनाएं देना वो भूल गई. आप कैसा महसूस करेंगे?
आज आपके घर में एक छोटी सी पार्टी है. उसमे आपने अपने सभी दोस्तों को बुलाया है. आपका बचपन का एक दोस्त है मनीष. वो अमेरिका में बस गया है और उससे आप पिछले बीस सालो से नहीं मिले हैं. आज ही शहर पहुंचा है. आपका जन्मदिन उसे याद था किसी तरह आपका पता पूंछ कर वो आपको जन्मदिन पर शुभकामनाये देने आपके घर आपकी पार्टी में पहुंचा. उसे अचानक अपने घर आया देख आप कैसा महसूस करेंगे?
जाहिर है पहली स्थिति में आप बहुत बुरा महसूस करेंगे और दूसरी स्थिति में बहुत अच्छा. ये अंतर क्यों है?
इस प्रश्न के उत्तर में डॉ मृणाल गोरे कहती है हमारी अपेक्छा का स्तर ही हमें सुखी दुखी बनाता है. आपकी पत्नी से आपकी अपेक्छा का स्तर बहुत ऊंचा था इसीलिए आपको बुरा लगा जबकि मनीष से आपको कोई अपेक्छा ही नहीं थी इसलिए अच्छा लगा.
लोकप्रिय हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर की साप्ताहिक पत्रिका मधुरिमा में एक कालम है - पहला तन्हा सफ़र. इस कालम में पाठिकाएं अपने पहले तन्हा सफ़र की यादे अन्य पाठको के साथ बाँटती हैं. आज की मधुरिमा में राजनादगांव छत्तीसगढ़ की नयन लड्ढा का अनुभव प्रकाशित है. अपने अनुभव में नयन लड्ढा ने लिखा है कि किस तरह उनके पहले तन्हा सफ़र में एक बुजुर्ग दम्पति ने उनका हौंसला बढाया. उन बुजुर्ग दम्पति का बेटा देश के लिए बलिदान हो चुका था और बेटी अनाथ बच्चो को सिक्छित करने का दायित्व निभा रही थी. नयन लड्ढा को उन बुजुर्ग दम्पति से जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा मिला. ये केवल आज प्रकाशित कालम की बात नहीं है. मै इसमें 99 प्रतिशत बार पढता हूँ कि किस प्रकार एक अनजान व्यक्ति ने समय पर मदद की या हौंसला बढाया.
जो है उसका महत्त्व समझना और उसके लिए कृतज्ञ होना, अपनी अपेक्छाओं का स्तर कम रखना और ये विश्वास करना की ये दुनिया और ये जीवन बहुत अच्छा है, यही वो बातें है जो जीवन और दुनिया के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदल कर हमें खुशियाँ दे सकती है.
इसीलिए मैं कहता हूँ खुश रहिये, ये बहुत आसान है. आप क्या कहते है?
बिल्कुल ठीक कहा है आपने।
ReplyDeleteखुशियों की भरमार जगत में दृष्टिकोण का फर्क चाहिए।
जीवन मूल्य स्थापित करने सार्थकता का तर्क चाहिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सही कहा! अच्छा आलेख.
ReplyDeleteगंगा गये तो गंगा वाले।
ReplyDeleteजमुना गये तो जमुना वाले।
हम भी यही कहेंगे,
बढ़िया है।
ठीक कहा आपने।
ReplyDeleteवैसे खुशी अपने आप आती है दुख लाए जाते हैं
Achcha laga aapke blog par aakar.Shubkamnayen.
ReplyDeleteजो है उसका महत्त्व समझना और उसके लिए कृतज्ञ होना.
ReplyDeleteशुभ कामनाओं के लिए आभार
मैं सोचता हूँ और देखता हूँ
ईश्वर ने मुझ पर कितनी कृपा की है
मुझे स्वर्णमय ह्रदयों का असीम स्नेह मिला है
तुम्हारी स्नेह ज्ञान गंगा ने मन को पावन कर दिया है
तिमिर त्रास रिक्त कर हृदय ज्योतित कर दिया है
आभार को हैं शब्द कम पर भावना व्यापक हुई है
जेठ की तपती दुपहर को राग सावन कर दिया है
मन समाधानी रहे क्लेश तब टिकता नही
पग ं रोकने से आप के यह सूर्य रथ रुकता नहीं
पर वेदना प्रारब्ध की पुरुषार्थ से जाती नहीं
तब भी तुम्हारी दृष्टी ने उत्साह से घर भर दिया है
इतनी सुंदर शैली के लिए बधाई
अच्छा हो
आहा !जिंदगी
के लिए कुछ लिखिए
पुनः धन्यवाद
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sahi kaha aapne post achchi hai.........
ReplyDeleteSatya-vachan Maharaaj!
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