
उज्जैन निवासी 57 वर्षीय इस कला साधक में बचपन से ही कलात्मक अभिरुचि थी. बचपन में सार्वजनिक गणेश उत्सव में झांकी सजाओ प्रतियोगिता में भाग लेने वाले इस कला साधक को जल्द ही मालवा के जनजातीय अंचलों ने आकर्षित किया. जहाँ धरती के सबसे सरल पर सबसे शानदार पदचारी जंगलों, झरनों, पहाडों में और अपने आप में मगन हैं. जहाँ परिवार और पड़ोस ही सब कुछ है. जहाँ प्रकृति से जुडा गीत संगीत है तो चित्र विचित्र भी.
धीरे धीरे बालू शर्मा कि भावनाओ ने इस पदचारी को विषय के रूप में और उसके सबसे मौलिक माध्यम को अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में चुन लिया. ये स्वाभविक ही रहा होगा क्योकि बालू शर्मा के शिल्प में जो उल्लास, आल्हाद और मदहोशी है वो इस धरती के इस अनगढ़ पदचारी के जीवन का मूल स्वर है.
बर्षों से जनजातीय कला में काम कर रहे इस कलासाधक के खाते में अनेक प्रदर्शनियां एवं पुरष्कार है. प्रदर्शनियों में जहाँगीर आर्ट गैलरी मुंबई 1990 एवं ललित कला आकादमी, नई दिल्ली 2004 प्रमुख हैं. पुरस्कारों में नेशनल एकेडमी, नई दिल्ली 1990 , म. प्र. कला परिषद्, भोपाल, आल इंडिया कालिदास पेंटिंग एंड स्कल्पचर एक्जिबिसन उज्जैन के पांच पुरष्कार और इंडियन एकेडमी आफ फाइन आर्ट, अमृतसर 2007 प्रमुख हैं.
वर्तमान में बालू शर्मा लगभग 250 वर्ष पूर्व के कबीलाई जीवन पर एक मूर्ति शिल्प संग्रह तैयार कर रहे हैं. कागज की लुगदी से बनने वाले शिल्पों में कबीलाई जीवन के विभिन्न रूप और रंग दिखाई देते है. इसमे कबीले का सरदार और उसका परिवार, कबीले की संगीत मंडली, ओझा या गुनिया, नाई प्रमुख हैं. इस मूर्ति शिल्प संग्रह में ऐसे ही कितने ही और चरित्र भी सम्मिलित है. लेकिन इन सब में सबसे अधिक प्रभावशाली है प्रार्थना में हाथ जोड़ कर आसमान की और देखता युवक. मानो वो हमारे मन की ही बात ईश्वर से कह रहा हो कि हे ईश्वर इस साल भरपूर बारिश दे, कुये जल से और खलिहान अन्न से भर दे.
इस शिल्प संग्रह का पूर्ण प्रदर्शन 14 जुलाई से भारत भवन में होगा, लेकिन इसकी एक झलक हमने इस अंतर्राष्ट्रीय जनजातीय फिल्म महोत्सव में आयोजित प्रदर्शनी में देखी. आप भी चित्रों के माध्यम से इस शिल्प संग्रह का और इस जनजातीय फिल्म महोत्सव में प्रर्दशित अन्य शिल्पों का आनंद लीजिये.












