Wednesday, 4 November 2009

ब्रम्हांड, पृथ्वी और हम.

आप अभी जब इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं, तब क्या आपको ये अनुमान है की आपकी कुर्सी के नीचे आग सा धधकता एक गोला है. जिसे हम पृथ्वी कहते हैं.इसके केंद्र का तापमान लगभग 6000 डिग्री सेन्टीग्रेड है जो हमारे सामने कप में रखी गरम चाय के तापमान से 1000 गुना ज्यादा है. ये वो तापमान है जो लगभग सूर्य की सतह का तापमान है.
हमारी पृथ्वी की सतह, जिस पर हम रहते है, चलते फिरते है, खेती करते है, जिस पर तरह तरह के खूबसूरत उद्यान है, जंगल है, झरने है, नदिया है, महासागर है,बर्फ से ढके पहाड़ है, दरअसल इस आग के एक धधकते गोले की करोडों सालों में ठंडी हुई ऊपरी सतह भर है. जो अन्दर खोलते लावे के ऊपर तैर रही है. जिसे भूगर्भ वैज्ञानिक earth crust कहते है और जिसकी अनुमानित गहराई 40 किलोमीटर है. जो पृथ्वी की अनुमानित त्रिज्या 6378 किलोमीटर की तुलना में कुछ भी नहीं है. ये सब आकड़े भी अनुमान के आधार पर है. क्योकि क्रूड आयल निकालने के लिए धरती में सबसे गहरा छेद जो हम कर पाए है वो 10 किलोमीटर से भी कम है और हम जा तो केवल 4 किलोमीटर तक ही पाए है.
इस earth crust का 95% हिस्सा ठंडे हुए लावे से बनी चट्टानों का बना है और शेष 5% हिस्सा रूपांतरित और तलछट चट्टानों का है. ये मिट्टी जो हमारे चारो और बिखरी पड़ी है और हमें जीवन देती है वो इस शेष 5% हिस्से का भी और छोटा हिस्सा है. धरती की सतह का छेत्रफल लगभग 511185932 वर्ग किलोमीटर है जो हमारे घर के 40 x 60 के प्लाट के छेत्रफल से लगभग 20 लाख 12 हजार गुने से भी बहुत ज्यादा है.
पृथ्वी की तुलना में मानव कितना छुद्र है और ब्रम्हांड की तुलना में मानव की स्थिती का तो कहना ही क्या, जहा स्वयं पृथ्वी ही एक बिंदु के सामान है.
इस छुद्रता में भी हमारा अंहकार कितना बड़ा होता है. कभी सोचा आपने?